Tuesday, September 22, 2009

“मौत या माफी, सरकार जल्द फैसला करे”


सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को सलाह दी है कि वह मृत्युदंड की सजा पाए कैदियों की दया याचिकाओं को निपटाए। अदालत ने कहा है कि किसी बड़ी राजनीतिक या सरकारी नीति को साधने की प्रक्रिया में सरकार मनुष्य को प्यादे के रूप में इस्तेमाल न करे।

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति हरजीत सिंह बेदी व न्यायमूर्ति जे.एम.पांचाल की खंडपीठ ने शुक्रवार को की थी। खंडपीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा था, “यह मामला अति प्रासंगिक बन गया है, क्योंकि आज राष्ट्रपति के समक्ष 26 दया याचिकाएं लम्बित पड़ी हुई हैं। इनमें से कुछ मामलों में अदालत को मृत्युदंड की सजा सुनाए एक दशक से भी अधिक समय बीत चुका है।”

इन 26 कैदियों में 13 दिसम्बर 2001 को संसद पर हुए हमले का दोषी, मोहम्मद अफजल गुरु भी शामिल है।

खंडपीठ ने कहा है, “हम न्यायाधीश, उन कारणों से व्यापक रूप से अनजान रहते हैं, जो किसी कैदी के पक्ष में या उसके खिलाफ फैसला करने के लिए सरकार को अंततोगत्वा प्रेरित करते हैं। लेकिन फैसला चाहे जो भी हो, उसे मामले के तथ्यों से संबंधित वैध सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए।”

खंडपीठ ने कहा है, “हम जोर देकर कहना चाहेंगे कि मनुष्य कोई सम्पत्ति या गुलाम नहीं हैं और उन्हें किसी राजनीतिक या सरकारी नीति को साधने की प्रक्रिया में प्यादे की तरह इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।”

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